स्त्री हूँ मैं
स्त्री हूं मैं
इर्दगिर्द प्रश्नचिन्ह
से लिपटी हुई
अपने जन्म से पुरानी
रीत मे ढली हुई
फूल बनकर जीवन
कोई सवार कर पली
हुई, हर किसी को
यहाँ नहीं मिली हुई
लेकिन समाज के मापदंड
से बंधी हुई तो इसी रीत
से मुझे कहाँ,
अब तक
आज़ादी मिली हुई
महज वस्तु बनकर
मैं सदियों से हूँ टली हुई
खुद को अपनों से बचा कर
आज ही समाज के चेहरे पर
तमाचा बनकर पड़ी हुई
पुरानी रीत को तोड़ने के लिए
सच से लड़ी हुई स्त्री हूँ मैं
समाज के दर पर खड़ी हुई |
अजय निदान
(फोर्थ टाइम वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर लेखन हेतु )
सर्वाधिकार सुरक्षित,भिलाई